Katarmal Sun Temple Almora Uttarakhand
कटारमल सूर्य मन्दिर : जहां सूर्य साक्षात विराजते हैं वटशिला में।


Katarmal Sun Temple Almora Uttarakhand : यूं तो भारत के उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध है लेकिन उत्तराखंड की पवित्र देवभूमि में भी भगवान सूर्यदेव कटारमल सूर्य मंदिर या बड़ आदित्य मंदिर में साक्षात विराजते हैं । अल्मोड़ा से लगभग 16-17 किलोमीटर की दूरी पर अधेली सुनार गांव में स्थित है भगवान सूर्यदेव का यह मंदिर। समुंद्रतल से लगभग 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह सूर्य मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी लगभग 200 साल पुराना माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर सूर्य भगवान की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित नहीं है बल्कि यह मूर्ति बड़ (बरगद) के पेड़ की लकड़ी से बनी है जो अपने आप में अद्भुत व अनोखी है। इसीलिए इस सूर्य मंदिर को “बड़ आदित्य मंदिर” भी कहा जाता है। कटारमल सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की इस मूर्ति को ढक कर रखा जाता हैं। इस मंदिर में साल में दो बार 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को सुबह के समय सूर्य की किरणें भगवान की मूर्ति पर सीधी पड़ती है। यह मंदिर वास्तुकला व शिल्पकला का एक अद्भुत नमूना है।
बड़ (बरगद) के पेड़ की लकड़ी से बनी है सूर्य भगवान की मूर्ति
कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग नवी शताब्दी का माना जाता है। उस वक्त उत्तराखंड में कत्यूरी राजवंश का शासन हुआ करता था। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल को जाता है। इसीलिए इस मंदिर को “कटारमल सूर्य मंदिर” कहा जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण राजा कटारमल ने एक ह़ी रात में करवाया था । यह उत्तराखंड का ऐसा एक अकेला मंदिर हैं जहां पर बड़ के भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। उड़ीसा के कोणार्क के सूर्य मंदिर के बाद यही एकमात्र प्राचीन सूर्य मंदिर हैं।
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कटारमल सूर्य मंदिर की विशेषता
सीढीनुमा हरे -भरे खेतों को पार करने के बाद ऊंचे – ऊंचे देवदार के घने जंगलों के बीच से होकर जाती पहाड़ी सड़कनुमा पगडंडी से चढ़ते हुए एक ऊँचें पर्वत पर स्थित कटारमल सूर्य मंदिर पर जब पहुंचते हैं तो मंदिर में कदम रखते ही उसकी भव्यता , विशालता का अनुभव खुद ब खुद हो जाता है। विशाल शिलाओं पर उकेरी गयी कलाकृतियों व लकड़ी के दरवाजों में की गयी अदभुत नक्काशी और सुंदर शांत सुरम्य प्राकृतिक वातावरण को देखते ह़ी सारी थकान खुद व खुद मिट जाती हैं। इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की तरफ है। इस मंदिर को एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है। मुख्य मंदिर की संरचना त्रिरथ है। गर्भगृह का आकार वर्गाकार है तथा शिखर वक्र रेखीय है जो नागर शैली की विशेषता है। यह मंदिर वास्तुकला व शिल्पकला का एक अद्भुत नमूना है। मुख्य सूर्य मंदिर के अलावा इस जगह पर 45 छोटे-बड़े और भी मंदिर है। यहां पर भगवान सूर्य देव के अलावा शिव , पार्वती , गणेशजी , लक्ष्मी – नारायण , कार्तिकेय व नरसिंह भगवान की मूर्तियां भी स्थापित है।
साल में दो बार सूर्य की किरणें भगवान की मूर्ति पर सीधी पड़ती है।
इस मंदिर की खसियत यह है कि इस मंदिर में साल में दो बार 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को सुबह के समय सूर्य की किरणें भगवान की मूर्ति पर सीधी पड़ती है। इस मंदिर की एक और खसियत यह है कि प्रातः काल इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान सूर्यदेव की पहली किरण पड़ते ही जगमगा उठता है यानि मंदिर में शिवलिंग को कुछ इस तरह स्थापित किया गया है कि सूर्य की पहली किरण सीधे उस पर ही पड़े। इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे पूर्वज विज्ञान में हमसे कितने आगे थे।
कटारमल सूर्य मंदिर संरक्षित स्मारक है।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने कटारमल सूर्य मंदिर को “संरक्षित स्मारक” घोषित किया है। इसीलिए अब इस मंदिर की देखरेख तथा इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व विभाग ने ले ली है । इस मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार लकड़ी का बना है और उसमें की गई नक्काशी भी उच्च कोटि की काष्ठ कला का नमूना है। वर्तमान में यह प्रवेश द्वार नई दिल्ली स्थित ” राष्ट्रीय संग्रहालय“ में रखा गया है। इसकी अद्भुत वास्तु कला , शिल्प कला , भव्यता अपने वैभवशाली गाथा के बारे में बहुत कुछ कहता है। कुमाऊं में स्थित सभी मंदिरों में (सभी प्राचीन व नवीन मंदिरों) यह सबसे ऊंचा व सबसे विशाल मंदिर है । प्रकृति की खुबसूरत बादियों के बीच बसा यह मंदिर पर्यटकों का मन बरबस ही मोह लेता है। यह हमारी महान भारतीय संस्कृति को तो दिखाता ही है साथ में उत्तराखंड के राजाओं के गौरवशाली इतिहास का भी बखान खुद-ब-खुद करता है। स्थानीय लोग व दूर-दूर से पर्यटक भगवान सूर्य देव के दर्शन करने के लिए तथा उनका आशीर्बाद लेने के लिए पूरे वर्ष भर यहाँ आते रहते है। ऐसा माना जाता है कि श्रध्दा व सच्चे मन से मांगी गयी मन्नत को सूर्य देव अवश्य पूरी करते हैं।
कटारमल सूर्य से जुडी प्रचलित कथा ( Katarmal Surya Temple Story )
इस मंदिर से प्रचलित एक कथा भी है। कहा जाता है कि उत्तराखंड के शांत हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में ऋषि मुनि सदैव अपनी तपस्या में लीन रहते थे। लेकिन असुर समय- समय पर उन पर अत्याचार कर उनकी तपस्या भंग कर देते थे। एक बार एक असुर के अत्याचार से परेशान होकर दूनागिरी पर्वत , कषाय पर्वत तथा कंजार पर्वत रहने वाले ऋषि मुनियों ने कोसी नदी के तट पर आकर भगवान सूर्य की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिए तथा उन्हें असुरों के अत्याचार से भय मुक्त किया। साथ ही साथ सूर्यदेव ने अपने तेज को एक वटशिला पर स्थापित कर दिया। तभी से भगवान सूर्यदेव यहां पर वट की लकड़ी से बनी मूर्ति पर विराजमान है। आगे चलकर इसी जगह पर राजा कटारमल ने भगवान सूर्य के भव्य मंदिर का निर्माण किया। इसीलिए इसे “कटारमल सूर्य मंदिर” कहा जाता है ।
जगत की आत्मा हैं भगवान सूर्य देव
लाल वर्ण , सात घोड़ों के रथ में सवार भगवान सूर्य देव को सर्वप्रेरक , सर्व प्रकाशक , सर्व कल्याणकारी माना जाता है। भगवान सूर्य देव को “जगत की आत्मा” कहा जाता है। सूर्यदेव से ह़ी पृथ्वी में जीवन है और नवग्रहों में सूर्य ही प्रमुख देवता माने जाते हैं। सारे देवताओं में सिर्फ भगवान सूर्य ही एक ऐसे देव हैं जो हर रोज साक्षात दर्शन देते हैं और जिन से समस्त विश्व के प्राणियों , पेड़ पौधों का जीवन चक्र अविरल रूप से चलता रहता है। इसीलिए हमारे धार्मिक ग्रंथो में सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। प्रातः उठकर उगते हुए सूर्य देव को जल देना व उनकी आराधना को सर्वोच्च माना गया है। भगवान सूर्य से ह़ी समस्त मनुष्य जाति को बिना रुके , बिना थके अबिरल चलते रहने की प्रेरणा मिलती हैं चाहे वक्त कैसा ह़ी क्यों ना हो।
मंदिर आने का सही समय (Best Time To Visit Jageshwar Dham Temple)
पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कटारमल सूर्य मंदिर में गर्मी का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। आप मार्च से जून तक फिर सितंबर से दिसंबर तक यहाँ आ सकते हैं । वैसे भगवान सूर्यदेव का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में वर्ष के किसी भी महीने में आया जा सकता है।
ध्यान में रखने योग्य बातें
कटारमल सूर्य मंदिर में मंदिर प्रशाशन द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करें। जूते -चप्पल निर्धारित स्थान पर रखें। वर्षा होने पर यहाँ हल्की ठंड रहती हैं। इसीलिए गर्म कपड़े साथ में लाना न भूलें। अगर आप यहाँ एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले अल्मोड़ा , भवाली , भीमताल या भुजियाघाट में कोई Hotel Book कर लीजिए। फोटोग्राफी के लिए एक अच्छा सा कैमरा अपने साथ अवश्य रखें। मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल रास्ता भी तय करना पड़ता है। इसीलिए पैदल चलने व ट्रैकिंग के शौक़ीन अपने साथ एक अच्छी क्वालिटी का जूता या स्पोर्ट शू अवश्य रखें।
कैसे पहुँचें कटारमल सूर्य मंदिर ( How To Reach Katarmal Surya Temple Temple)
कितने दिन के लिए आए (Suggested Duration)
कटारमल सूर्य मंदिर में आप अपने हिसाब से अपना समय बिता सकते हैं।
क्यों आए ?
मौसम (Weather)
कटारमल सूर्य मंदिर या अल्मोड़ा का तापमान गर्मियों में बहुत ज्यादा नहीं रहता हैं। मई और जून में भी इन जगहों का तापमान बहुत अधिक नही रहता हैं यानि यहाँ मौसम सुहाना रहता हैं। आप यहां मार्च से लेकर जून तक और सितंबर से लेकर दिसंबर तक कभी भी आ सकते हैं। यहाँ हल्की वर्षा होने पर और दिसंबर -जनवरी में ठंड रहती हैं। इसीलिए अगर आप इस वक्त यहां आ रहे हैं तो गर्म कपड़े साथ में लाना न भूलें। अगर आप यहाँ एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book कर लीजिए। फोटोग्राफी के लिए एक अच्छा सा कैमरा अपने साथ अवश्य रखें। ट्रैकिंग के शौक़ीन अपने साथ एक अच्छी क्वालिटी का जूता या स्पोर्ट शू अवश्य रखें।