Yamunotri Temple Uttarkashi Uttarakhand
चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है यह पावन धाम ।


Yamunotri Temple Uttarkashi Uttarakhand : कालिंदी पर्वत की तलहटी पर माँ यमुना का प्राचीन पवित्र व भव्य मंदिर , मंदिर से आती मंत्रों व धंटों की मधुर ध्वनि , माँ यमुना की आरती करते हजारों भक्त , गर्म व ठंडी जल धाराएं , सूर्यकुंड , गौरीकुंड , दिव्य ज्योति शिला , ठंडी ताजी हवा , कल -कल कर अपने पूरे वेग से बहती यमुना नदी , शांत – सुरम्य मन को सुकून देने वाला आध्यत्मिक वातावरण , देवदार व चीड़ के घने जंगलों से घिरा हिमालयी क्षेत्र , बर्फ से ढकी ऊँची – ऊँची पहाड़ियां , यही तो पहचान है सूर्यतनया माँ यमुना के यमुनोत्री धाम की। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के उत्तरकाशी शहर से लगभग 124 किलोमीटर दूर स्थित है यमुनोत्री धाम और इसी यमुनोत्री धाम में स्थित है शनिदेव व यमराज की बहन माँ यमुना का पवित्र यमुनोत्री मंदिर। लगभग 3,293 मीटर (10,804 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के चार धामों में से एक पवित्र धाम है। चारधाम यात्रा की शुरुवात इसी धाम से होती है। हिमालयी क्षेत्र होने के कारण जाड़ों में यह स्थान पूरी तरह बर्फ से ढक जाता है जिस कारण यमुनोत्री धाम के कपाट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं और माँ यमुना पूरे धार्मिक रीति रिवाजों के साथ खरसाली गाँव (खुशीमठ) स्थित अपने मायके खरसाली मंदिर में आ जाती हैं। वो पूरे शीतकाल में (6 महीने) यही प्रवास करती हैं।
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सूर्यकुंड के गर्मपानी से बनाया जाता है प्रसाद ।
यमुनोत्री मंदिर के आस -पास कई गर्म पानी के स्रोत है जो किसी न किसी कुंड में गिरते हैं। सूर्यकुंड यहाँ का सबसे ज्यादा गर्मपानी का जलकुंड है जिसमें भक्तगण एक कपड़े की पोटली में चावल व आलू बांधकर डालते हैं जो थोड़ी ही देर में पक जाते है। फिर यही चावल व आलू माँ यमुना को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के बाद खुद भी ग्रहण करते है। आश्चर्य की बात यह है कि इस गर्म जल के सूर्यकुंड के पास ही ठंडे जल का गौरी कुंड भी है। सूर्यकुंड के समीप ही एक शिला भी है जिसे दिव्य ज्योति शिला कहा जाता है। माँ यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा की जाती है। कलिंदी पर्वत में स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर यमुनोत्री धाम से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है जो यमुना नदी का उद्गम स्थल है। हालांकि दुर्गम चढाई होने के कारण वहां तक पहुँचना कठिन है। कलिंदी पर्वत से निकलने के कारण यमुना का एक नाम कालिंदी भी है जो भगवान कृष्ण की प्रिय पटरानी हैं। सन 1885 में टिहरी के राजा सुदर्शन शाह ने माँ यमुना के सम्मान में यमुनोत्री मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन बाद में आये भूकंप की वजह से मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। इसीलिए इस मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी गुलरिया देवी के द्वारा किया गया। मंदिर के गर्भगृह में जीवनदायिनी माँ यमुना की काले रंग की संगमरमर की मूर्ति के साथ – साथ मां गंगा की सफेद संगमरमर की मूर्ति भी विराजमान है।
पूरे धार्मिक रीति रिवाजों के साथ माँ यमुना 6 महीने के लिए अपने मायके जाती है।
उच्च हिमालयी क्षेत्र यमुनोत्री में भारी बर्फवारी होने की वजह से जब यमुनोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तब दीपावली के पावन अवसर पर (भाई दूज के दिन) एक विशाल धार्मिक शोभायात्रा के साथ माँ यमुना की प्रतिमा (भोगमूर्ति) को खरसाली गाँव के मंदिर में पूरे धार्मिक रीति रिवाजों के साथ लाया जाता है। माँ यमुना पूरे शीतकाल के दौरान (6 महीने) यही प्रवास करती है और फिर ग्रीष्मकाल में अक्षय तृतीया के दिन फिर एक विशाल शोभायात्रा के साथ खरसाली गाँव से यमुनोत्री धाम को एक बेटी की तरह विदा होती है। पहाड़ों में भाई द्वारा बहिनों को ससम्मान ससुराल से लाने और पहुंचाने की परंपरा है। शनिदेव भी इस परम्परा को बखूबी निभाते हैं। यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने पर वो अपनी बहिन यमुना को लाने यमुनोत्री धाम जाते हैं और अपनी बहन को पूरे सम्मान के साथ खरसाली गाँव लाते हैं। यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने पर वो पुन: माँ यमुना को छोड़ने यमुनोत्री धाम भी जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दौरान पूरा गाँव माँ यमुना की भक्ति में डूबा रहता है और देश – विदेश से भी श्रद्धालु माँ यमुना के दर्शन व उनकी पूजा – अर्चना करने इस गाँव में पहुँचते हैं। पूरे गाँव में उत्स्व व हर्षोउल्लास का माहौल रहता है। कहा जाता है कि भाई दूज के दिन माँ यमुना के दर्शन करने व मथुरा में स्नान करने से विशेष लाभ मिलता है।
क्या करें ?
कहते है कि माँ यमुना के दर्शन करने या यमुना में स्नान करने से पाप कर्मों व अकाल मृत्यु से मुक्ति पाई जा सकती है। इसीलिए यमुनोत्री धाम / मंदिर में जीवनदायिनी माँ यमुना के दर्शन कीजिए। यमुनोत्री धाम व उसके आस -पास के प्राकृतिक सौंदर्य का मजा लीजिए। भव्य हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन कीजिए। बर्फ से ढकी चोटियों को निहारिये। जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम तक ट्रैकिंग कीजिए। पर्वतारोहण , ट्रैकिंग , कैंपिंग , राफ़्टिंग का मजा लीजिए। खूब फोटोग्राफी कीजिए । इसके अलावा भी यमुनोत्री धाम व उत्तरकाशी शहर के आस -पास कई धूमने लायक सुंदर जगहें है जैसे विश्वनाथ मंदिर , गंगोत्रीधाम , डोडीताल , गोमुख , यमुनोत्री गरंताग गली , केदरकांठा , नेलांग घाटी आदि जहाँ आप जा सकते हैं।
यमुनोत्री धाम आने का सही समय (Best Time To Visit In Yamunotri Temple)
यमुनोत्री धाम एक हिमालयी पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। जाड़ों में यह पूरा क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है जिस कारण यमुनोत्री धाम के कपाट 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं। इसीलिए यमुनोत्री धाम यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और सितंबर – अक्टूबर के बीच में है। अगर आप यमुनोत्री धाम में एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book कर लीजिए।
ध्यान में रखने योग्य बातें
आपको जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम तक का लगभग 5 किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ेगा। इसीलिए पूरी तैयारी के साथ आइये। अगर आप यहां पर्वतारोहण , ट्रैकिंग , कैंपिंग करना चाहते हैं तो पहले इसके बारे में जानकारी अवश्य लें । यमुनोत्री धाम में पैदल चलने हेतु अच्छी क्वालिटी का जूता अवश्य पहनें। अगर आप यमुनोत्री धाम में एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book अवश्य कर लीजिए।
कैसे पहुँचें यमुनोत्री धाम ( How To Reach Yamunotri Temple)
कितने दिन के लिए आए (Suggested Duration)
यमुनोत्री धाम अपने आप में बहुत ही सुन्दर , सुरम्य , शांत व आध्यात्मिक हिमालयी क्षेत्र है । इसके अलावा भी इसके आस -पास कई धूमने लायक सुंदर जगहें है जैसे विश्वनाथ मंदिर , गंगोत्रीधाम , डोडीताल , गोमुख , गरंताग गली , केदरकांठा , नेलांग घाटी आदि जहाँ आप जा सकते हैं। इसीलिए यहाँ आप अपने हिसाब से अपना समय बिता सकते हैं। अगर आप यमुनोत्री मंदिर में एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book कर लीजिए।