Purnagiri Temple Tanakpur Champawat Uttarakhand
पूर्णागिरी मंदिर : 51 शक्तिपीठों में से एक है माँ पूर्णागिरि मंदिर।


Purnagiri Temple Tanakpur Champawat Uttarakhand : उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर अन्नपूर्णा पर्वत शिखर पर स्थित है माँ पूर्णागिरि का पवित्र शक्तिपीठ | समुद्रतल से लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पूर्णागिरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है जिसकी आराध्या देवी माँ महाकाली हैं । ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर दक्ष प्रजापति की पुत्री और शिव की अर्धांगिनी माता सती की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। शारदा नदी (काली नदी) के किनारे अन्नपूर्णा पर्वत की चोटी पर स्थित यह पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए प्रसिध्द है। वैसे तो यहाँ साल भर लोग माता के दर्शन करने आते रहते हैं मगर मार्च-अप्रैल माह में पड़ने वाली चैत्र नवरात्रि की तो बात ही अलग है। उस समय यहाँ भक्तों का मेला लगा रहता है।
सपनों में प्रकट हुई मां पूर्णागिरि।
सन 1632 में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी , चंपावत के राजा ज्ञानचंद के यहाँ पहुँचे। उसी समय एक रात उनके सपने में मां पुण्यगिरि प्रकट हुई और उन्हें एक मंदिर निर्माण करने का आदेश दिया जिसके बाद यहाँ मंदिर की स्थापना की गई। तब से लेकर आज तक इस मंदिर में निरन्तर पूजा – अर्चना चलती आ रही है। चैत्र नवरात्रि के वक्त यहाँ त्यौहार सा माहौल रहता है। इसी समय यहाँ “पूर्णागिरि मेला” भी आयोजित किया जाता है जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। मंदिर ऊंचाई में होने के कारण वहाँ से आस -पास के गांव , शारदा नदी , नेपाल के कुछ क्षेत्रों व घाटियों के खूबसूरत नजारे दिखाई देते है। आने वाले समय में श्रद्धालु रोपवे से भी मंदिर पहुँच पायेंगे।
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बाबा भैरवनाथ हैं पूर्णागिरि शक्तिपीठ के द्वारपाल
पूर्णागिरि मंदिर पहुंचने से पहले टुन्यास स्थित भैरव मंदिर पर बाबा भैरवनाथ धूनी रमाये बैठे है जो पूर्णागिरि शक्तिपीठ के द्वारपाल माने जाते हैं। बाबा भैरवनाथ के दर्शन के बाद ही मां पूर्णागिरि के दर्शन किये जाते है। यहां सालभर धूनी जली रहती है। बाबा भैरव को हनुमान का सारथी व शिव का काल रूप भी माना जाता है। टुन्यास से पूर्णागिरि मंदिर तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग है। टनकपुर से टुन्यास तक किसी भी वाहन से पहुँचा जा सकता है। टुन्यास से दो पैदल मार्ग झूठे के मंदिर तक जाते हैं। एक पैदल मार्ग जिसमें लगभग 480 सीढ़ियोाँ हैं और दूसरा कम सीढ़ियों वाला पैदल मार्ग है। दोनों ही मार्ग “झूठे के मंदिर” के पास मिल जाते हैं उसके बाद मंदिर तक एक ही मार्ग जाता है।
झूठे का मंदिर ।
मां पूर्णागिरि धाम जाने वाले पैदल मार्ग में ही “झूठे का मंदिर” भी है जहाँ पर पूजा – अर्चना करके आगे बढ़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार एक सेठ ने पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मां के दरबार में सोने का मंदिर चढ़ाने की प्रतिज्ञा की लेकिन मन्नत पूरी होने के बाद लोभवश उस सेठ ने तांबे का मंदिर बनबाया और उसमें सोने का पानी चढ़ा दिया। जब मजदूर सेठ द्वारा बनाये गये उस मंदिर को पूर्णागिरि धाम की ओर ले जा रहे थे तो वो रास्ते में थकान मिटाने के लिए विश्राम करने बैठ गए और मंदिर को वही पास पर ही रख दिया। थोड़ी देर बाद जब उन्होंने मंदिर को उठाने की कोशिश की तो वो मंदिर को वहां से नहीं उठ सके। सेठ को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने माँ से माफी मांगी और मंदिर को वही स्थापित कर दिया। तब से इसे “झूठे का मंदिर” , के रूप में जाना जाता है।
सिद्धबाबा के दर्शनों के बाद ही पूरी होती है माँ पूर्णागिरि शक्तिपीठ की पवित्र यात्रा
ऐसा माना जाता हैं कि माँ पूर्णागिरि शक्तिपीठ की पवित्र यात्रा सिद्धबाबा के दर्शनों के बाद ही पूरी होती है। मान्यता है कि सिद्धबाबा माँ के अनन्य भक्त थे। उन्होंने एक ऊंची चोटी पर अपना आश्रम बनाया था। कहते हैं कि एक बार नदी में मां के स्नान के वक्त ही वह भी नदी में पहुंच गये। इससे क्रोधित होकर देवी ने सिद्धबाबा को शारदा नदी के पार नेपाल फेंक दिया। बाद में जब देवी को पता चला कि वह उनका भक्त है तो उन्होंने सिद्धबाबा को आशीर्वाद देते हुए कहा कि मेरे दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा तभी पूरी होगी जब वो तुम्हारे भी दर्शन करेंगे। इसीलिए भक्त मां पूर्णागिरि के दर्शन के बाद सिद्धबाबा के मंदिर पहुंचते हैं। सिद्धबाबा का मंदिर नेपाल (कंचनपुर) के ब्रह्मदेव में स्थापित है जो वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर है। दरअसल यहाँ पर भारत और नेपाल की सीमा मिलती हैं।
क्या करें ?
माँ पूर्णागिरि शक्तिपीठ अन्नपूर्णा पहाड़ की चोटी पर है । इसीलिए मंदिर तक पैदल पहुँचना पड़ता है मगर मंदिर में पहुंचने के बाद एक असीम सी शांति की अनभूति होती है। चढ़ाई चढ़ते वक्त अपने पास पानी अवश्य रखिये। रास्ते में जगह -जगह पर आपको पूजा के सामान व खाने -पीने की छोटी -छोटी दुकानें मिल जाएँगी। इसके साथ ही बाबा भैरवनाथ , झूठे के मंदिर और सिद्धबाबा मंदिर अवश्य जाइये। पैदल चलने के लिए एक अच्छी क्वालिटी का जूता व फोटोग्राफी के लिए कैमरा अवश्य रखिये।
माँ पूर्णागिरि मंदिर आने का सही समय (Best Time To Visit In Purnagiri Temple)
माँ पूर्णागिरि शक्तिपीठ में मार्च-अप्रैल माह में पड़ने वाली चैत्र नवरात्रि के वक्त काफी भीड़भाड़ रहती है। पूर्णागिरि मेला भी इसी वक्त शुरू होता है जो तीन महीने तक चलता है। इस समय यहाँ थोड़ी गर्मी भी रहती है। बरसात के बाद का समय भी पूर्णागिरि मंदिर जाने के लिए अच्छा है।
ध्यान में रखने योग्य बातें
पूर्णागिरी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इसीलिए मंदिर परिसर में मंदिर के नियमों का पालन करें । मंदिर में शांति बनाएं रखें। अन्य लोगों को सहयोग करें। पैदल चलने के लिए एक अच्छी क्वालिटी का जूता पहनें और फोटोग्राफी के लिए एक अच्छा सा कैमरा अपने साथ अवश्य रखें। अगर आप टनकपुर या चंपावत में एक – दो दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book कर लीजिए।
कैसे पहुँचें पूर्णागिरी मंदिर ( How To Reach Purnagiri Temple)
कितने दिन के लिए आए (Suggested Duration)
पूर्णागिरी मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत के चोटी पर स्थित है । यहाँ पहुंचकर मन में बहुत ही शांति व सुकून का अनुभव होता है मगर यहाँ विशेष अवसरों पर भीड़ -भाड़ बहुत अधिक रहती है। इसीलिए अच्छे से दर्शन कर वापस आ जाइये ताकि अन्य लोगों को भी दर्शन का मौका मिल सके।
क्यों आए पूर्णागिरी मंदिर।
मौसम (Weather)
पूर्णागिरी मंदिर में आप मार्च से लेकर जून तक और सितंबर से लेकर नवंबर तक कभी भी आ सकते हैं। मगर दिसंबर – जनवरी में थोड़ी ठण्ड रहती है। अगर आप टनकपुर या चम्पवात में कुछ दिन रुकना चाहते हैं तो आने से पहले कोई Hotel Book कर लीजिए। फोटोग्राफी के लिए एक अच्छा सा कैमरा अपने साथ अवश्य रखें। ट्रैकिंग के शौक़ीन अपने साथ एक अच्छी क्वालिटी का जूता या स्पोर्ट शू अवश्य रखें।